वनटांगियाें के लिए भगवान राम से कम नहीं हैं ये मुख्यमंत्री

2009 से मनाते हैं दीपावली

लखनऊ। देश  के  एक  मुख्यमंत्री   ऐसे  हैं,  जो  वनटांगियों  को  लिए  भगवान  राम  से  कम  नहीं  हैं।  जिस  तरह  से  भगवान  राम  ने  अहिल्या  को  तारा  था,  उसी  तरह  इस  मुख्यमंत्री  ने  वनटांगियों  को  अधिकार  दिलाया।  बिजली,  पानी  की  आपूर्ति  सुनिश्चित  कराई।  स्वास्‍थ्य,  शिक्षा  का  अधिकार  दिया।  खेती  के  लिए  जमीन  उपलब्‍ध  कराई।  यहां  तक  कि  आजादी  के  बाद  मतदान  का  अ‌धिकार  दिलाया।

 

हम  बात   कर  रहे  हैं  गोरक्षपीठाधीश्वर  व  यूपी  के  मुख्यमंत्री  योगी  आदित्यनाथ  का । वह वर्ष  2009 से  ही वनटांगियों  के  साथ  दीपावली  मनाते  हैं।  यह  सिलसिला  इस  बार  भी  जारी  रहा।  आपको  बताएं, योगी आदित्यनाथ पहली बार  1998 में  गोरखपुर के सांसद बने  थे।  योगी  के  संज्ञान  में  आया  कि वनटांगिया बस्तियों में नक्सली अपनी गतिविधियों को रफ्तार देने की कोशिश में हैं। नक्सली गतिविधियों पर लगाम के लिए  ही योगी सबसे पहले शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को इन बस्तियों तक पहुंचाने की ठानी   और  गोरक्षीपठ  से  संबंधित महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की संस्थाओं को  अलग-अलग  जिम्मेदारी  दी। कृषक इंटर काॅलेज व एमपीपीजी काॅलेज जंगल धूसड़ और गुरु श्री गोरक्षनाथ अस्पताल  को  शिक्षा, स्वास्‍थ्य  व्यवस्‍था  दुरुस्त  करने  को  कहा।

 

जंगल तिनकोनिया नंबर-3 वनटांगिया गांव से 2003 में  शुरू प्रयास 2007 तक आते-आते मूर्त रूप लेने लगा। इस गांव के रामगणेश कहते हैं कि महराज जी (योगी आदित्यनाथ को वनटांगिया समुदाय के लोग इसी संबोधन से बुलाते हैं) हम लोगों के लिए उस राम की भूमिका में आए जिन्होंने कभी  अहिल्या  का उद्धार किया था।  अब  मुख्यमंत्री  ने  वनटांगियों  काे  तारा  है।  कभी झोपड़ी  में  रहते  थे, अब  पक्के  मकान  में  रहे  हैं।  बच्चों  को  अच्छी  शिक्षा  मिल  रही  है।

 

कौन हैं सौ साल तक  उपेक्षित रहे वनटांगिया

अंग्रेजी शासनकाल में जब रेल पटरियां बिछाई जा रही थीं तो बड़े पैमाने पर जंगलों से साखू के पेड़ों की कटान हुई। इसकी भरपाई के लिए अंग्रेज सरकार ने साखू के पौधों के रोपण और उनकी देखरेख के लिए गरीब भूमिहीनों, मजदूरों को जंगल मे बसाया। साखू के जंगल बसाने के लिए वर्मा देश की टांगिया विधि का इस्तेमाल किया गया, इसलिए वन में रहकर यह कार्य करने वाले वनटांगिया कहलाए।  गोरखपुर  के कुसम्ही जंगल के पांच इलाकों जंगल तिनकोनिया  नंबर तीन, रजही खाले टोला, रजही नर्सरी, आमबाग नर्सरी व चिलबिलवा में वर्ष 1918 में बसीं। 1947 में देश भले आजाद हुआ लेकिन वनटांगियों का जीवन गुलामी काल जैसा ही बना रहा। जंगल बसाने वाले इस समुदाय के पास न तो खेती के लिए जमीन थी और न ही झोपड़ी के अलावा कोई निर्माण करने की इजाजत। पेड़ के पत्तों को तोड़कर बेचने और मजदूरी के अलावा जीवनयापन का कोई अन्य साधन भी नहीं  था। और तो और इनके पास ऐसा कोई प्रमाण भी नहीं था, जिसके आधार पर वह सबसे बड़े लोकतंत्र में अपने नागरिक होने का दावा कर पाते। समय समय पर वन विभाग की तरफ से वनों से बेदखली की कार्रवाई का भय  अलग  से  रहता  था।

 

 

 

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